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जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

बागवानी में हम जिन खादों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें जैविक खादों का अपना अहम महत्व होता है। बहुत सारी खादों को हम घर पर ही तैयार कर सकते हैं। आज हम आपको मसूर की दाल से निर्मित होने वाली खाद के विषय में बताने जा रहे हैं। आपको इस खाद को तैयार करने के लिए सिर्फ दो मुठ्ठी मसूर की दाल की आवश्यकता होती है। दरअसल, आप अपने घर के लगभग सभी गमलों में इसका प्रयोग कर सकते हैं। मसूर की दाल से खाद निर्मित किए जाते हैं। खाद अथवा उर्वरक पोधों के पोषण के लिए तो आवश्यक होने के साथ-साथ उनके विकास में भी मददगार साबित होती है। हम घर में बागवानी करते समय विभिन्न प्रकार की जैविक और अजैविक खादों का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, इस लेख में हम आपको बागवानी में इस्तेमाल होने वाली एक ऐसी खाद के विषय में बताएंगे, जिसे निर्मित करने में आपको किसी भी अतिरिक्त सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही, घर में मौजूद सामग्रियों के जरिए से आप यह खाद घर पर ही बना सकते हैं। दरअसल, इस खाद को हम मसूर की दाल से निर्मित करते हैं। साथ ही, इसका इस्तेमाल हम घर की बागवानी वाले पौधों के लिए भी कर सकते हैं।

खाद तैयार करने की विधि

मसूर की दाल की बात की जाए तो इसमें वे समस्त पोषक तत्व विघमान होते हैं, जिनके चलते पौधों में विकास और वृद्धि को रफ्तार मिलती है। इसको तैयार करने के लिए आपको सबसे पहले दो मुठ्ठी दाल को तकरीबन आधा लीटर पानी में डाल लें। पानी में इस दाल को 4 से 5 घंटे तक रखें। यदि मौसम सर्दी का है, तो आप इसको रात भर भिगो कर रख सकते हैं।

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पानी का मिश्रण किस अनुपात में किया जाए

पौधों में इस खाद को डालने के लिए सर्व प्रथम पानी और दाल को अलग कर लेना है। आपको दाल के भिन्न किए गए पानी में 1:5 के अनुपात में पानी और मिला लेना है। इस पानी को पौधों में एक स्प्रे बोतल से छिड़काव के साथ में पौधों की मृदा में पानी को डाल देना है। यह पानी बहुत सारे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिसकी वजह से पौधों में होने वाले विकास में वृद्धि होती है। आपको इस बात का विशेष ख्याल रखना है, कि यह पानी आपको पौधों में एक माह में केवल एक बार ही देना है। पानी से केवल पौधों की मिट्टी की ऊपरी सतह भीगने तक ही सिंचाई करनी चाहिए।

किस प्रकार प्रयोग करें

किसान भाइयों यदि आप इस दाल के पानी से खाद तैयार करना चाहते हैं, तो आपको एक बार के इस्तेमाल के पश्चात उस दाल को फेंकना नहीं है। क्योंकि, एक बार के उपयोग के पश्चात भी इसके पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं। आप इस दाल का इस्तेमाल तीन बार तक कर सकते हैं। पौधों में इस खाद का इस्तेमाल पानी के तौर पर नहीं करना चाहिए। बतादें, कि आप इस दाल को महीन पीस लें। साथ ही, इसे पौधों की मिट्टी की ऊपरी परत पर ही मिला दें। आपको इसे मिलाने से पूर्व एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि आप जिन पौधों में इस खाद को मिश्रित करने जा रहे हैं, उस मिट्टी की पहले गुड़ाई कर लें। इसके पश्चात ही इसका उपयोग करें।
किसानों को हेमंत सरकार का मरहम

किसानों को हेमंत सरकार का मरहम

झारखंड में बारिश उम्मीद से कम हुई, नतीजा यह हुआ कि खेत में लगी फसल चौपट हो गई। किसान बारिश की उम्मीदों में रह गए, बारिश हुई नहीं और किसान फिर एक साल पीछे चला गया। फौरी तौर पर बीते दिनों हेमंत सोरेन की सरकार ने प्रति किसान 3500 रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया है।


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24 में से 22 जिले सूखा प्रभावित

बारिश के होने या न होने की पुख्ता सूचना आज भी इंसान नहीं दे पाता है। उसे आसमान की तरफ देखना ही पड़ता है, झारखंड जैसे राज्य में यही हो रहा है। सितंबर से अक्टूबर तक जितनी बारिश की उम्मीद थी। उतनी हुई नहीं, नतीजा यह हुआ कि जो फसल खेत में लगी थी, वह या तो मुरझा गईं या फिर कुपोषण का शिकार होकर रह गईं। झारखंड के 24 में से 6 से 7 जिले ऐसे थे, जहां बारिश ज्यादा हो गई। ज्यादा बारिश होने के नाते भी फसलें मार खा गईं। किसानों की इस तकलीफ को सरकार ने गंभीरता से देखा और सूखा घोषित करने के लिए एक टीम बनाई। जिसने वस्तुस्थिति का आंकलन कर अपनी रिपोर्ट दे दी है। सूखा घोषित करने के जो पैमाने हैं, उनके अनुसार 24 में से 22 जिले सूखा प्रभावित घोषित किये गए।


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प्रति किसान 3500 रुपये का मुआवजा

बीते दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की मीटिंग की और उस मीटिंग में यह फैसला किया, कि सरकार किसानों को यूं ही परेशान नहीं होने देगी। सरकार ने तय किया कि हर किसान को 3500 रुपये दिये जाएंगे. इससे उनका दुख थोड़ा तो कम होगा। हाल के दिनों में झारखंड की सिंचाई परियोजनाओं को लेकर भी मुख्यमंत्री चिंतित दिखे। वह हर खेत को पानी पहुंचाना चाहते हैं, पर यह अकेले राज्य सरकार के बूते की बात नहीं। इसमें केंद्र को सहयोग करना ही पड़ेगा।

पोखरे बनाने के लिए अनुदान

सूत्रों के अनुसार, इस संबंध में कई बार केंद्रीय कृषि मंत्री से पत्राचार भी किया गया पर केंद्र से बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं मिला। यह मान कर लोग चल रहे हैं कि किसानों के बारे में बात करना और किसान की योजनाओं को झारखंड की धरती पर उतारना दो अलग बातें हैं। शायद यही कारण था, कि जब केंद्र से झारखंड सरकार को मुकम्मल जवाब नहीं मिला तो झारखंड सरकार ने खुद ही कमर कस लिया। अब एक योजना का प्रारूप तैयार किया जा रहा है, इस योजना के तहत सरकार छोटे-छोटे पोखरों के लिए अनुदान की व्यवस्था करेगी। शर्त यह होगी कि इन पोखरों से सिर्फ सिंचाई और मछली पालन ही किया जाएगा।


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अभी यह योजना शुरूआती दौर में है, मान कर चलें कि दिसंबर के आखिरी तक यह तैयार हो जाएगी। अगर ऐसा हो गया तो, किसानों को थोड़ी राहत तो होगी ही, जो किसान बरसात के लिए आसमान की तरफ टकटकी लगाए देखता रहता है। वह सामान्य दिनों में होने वाली बारिश के जल को उस पोखरे में सहेज कर तो रख सकेगा। आने वाले दिनों में पंपिंग सेट की मदद से उस पोखरे के पानी से सिंचाई भी की जा सकती है, सरकार ने इस दिशा में कदम तो बढ़ा दिये हैं। देखते चलें, कब तक इस पर प्रभावी ढंग से अमल हो पाता है।
भारत के 90 प्रतिशत मखाना उत्पादक राज्य में मखाने की खेती के लिए अनुदान दिया जा रहा है

भारत के 90 प्रतिशत मखाना उत्पादक राज्य में मखाने की खेती के लिए अनुदान दिया जा रहा है

बिहार राज्य मखाना उत्पादन में काफी बड़ा राज्य है। बिहार में भारत का 90 प्रतिशत मखाने का उत्पादन होता है। वर्तमान बिहार की राज्य सरकार मखाना उत्पादन में 72 हजार रुपये तक अनुदान मुहैय्या करा रही है। भारत के कुछ राज्यों में मखाने का अत्यधिक उत्पादन किया जाता है। बिहार भी उन्हीं में से एक राज्य है। जानकारी के लिए बतादें कि बिहार का मखाना भारत के विभिन्न राज्यों में भेजा जाता है। इतना ही नहीं बिहार के मखाने को विदेशों में भी बड़े स्वाद और जायके के साथ खाया जाता है। क्योंकि, मखाने की खपत काफी ज्यादा होती है, इस वजह से बिहार के किसान बेहतर आमदनी भी कर लेते हैं। बिहार सरकार की तरफ से मखाने की खेती हेतु किसानों प्रोत्साहित कर रही है। अब राज्य सरकार की तरफ से किसानों के फायदे में बड़ी पहल की गई है।

बिहार के मखाना किसानों को कितना अनुदान दिया जाएगा

बिहार सरकार के कृषि विभाग द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, मखाने का उत्पादन करने वाले किसान भाइयों के लिए सुनहरा अवसर है। मखाना विकास योजना के अंतर्गत मखाने के उच्च किस्म के बीज का प्रत्यक्षण करने हेतु अनुदान मुहैय्या कराया जाएगा। राज्य सरकार की तरफ से प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 97,000 रुपये निर्धारित किया गया है। इस पर लगभग 72750 रुपये अनुदान प्रदान किया जा रहा है। यह समकुल खर्च का 75 प्रतिशत है। यह भी पढ़ें: मखाने की खेती करने पर मिल रही 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी : नए बीजों से हो रहा दोगुना उत्पादन

अनुदान हेतु किसान कहाँ संपर्क करें

बिहार निवासी जो भी किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं अथवा योजना से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी लेना चाहते हैं। वह जनपद में उपस्थिति कृषि विभाग में जाकर योजना के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। कृषि अधिकारी से योजना से जुड़े समस्त नॉर्म्स की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

बिहार में भारत का कुल 90 प्रतिशत उत्पादन होता है

बिहार राज्य में मखाना उत्पादकता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं, कि एकमात्र बिहार राज्य में ही मखाने की 90 प्रतिशत पैदावार की जाती है। इसमें प्रोटीन काफी अधिक और प्रचूर मात्रा मेें पायी जाती है। बिहार सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि मखाना उत्पादन करने के मामले में किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु अनुदान दिया जा रहा है। बिहार सरकार की तरफ से किसानों को अच्छी किस्मों के बीज मुहैय्या कराए जा रहे हैं। बतादें, कि बिहार के अंदर वर्ष में दो बार मखाने का उत्पादन किया जाता है। पहली फसल की बुवाई मार्च के माह में की जाती है। अगस्त-सितंबर तक पैदावार हो जाती है। द्वितीय फसल सितंबर-अक्टूबर के मध्य होती है, इसकी पैदावार फरवरी-मार्च के बीच प्राप्त होती है।